सरिस्का के जंगल में फिर भड़की आग: पहले जहां आग फैली, वहां से 3KM दूर दोबारा उठीं लपटें, जयपुर-दौसा से बुलाई टीमें

सरिस्का के जंगल में फिर भड़की आग: पहले जहां आग फैली, वहां से 3KM दूर दोबारा उठीं लपटें, जयपुर-दौसा से बुलाई टीमें

सरिस्का में टाइगर सहित दूसरे वन्य जीव दोबारा खतरे में हैं। 3 दिन बाद दोबारा आग बेकाबू हो चुकी है। पहले आग बालेटा रूंध के आसपास करीब 25 वर्ग किलोमीटर में लगी थी। अब आग उसे करीब 2 से 3 किलोमीटर दूर जहाज-भैंसोटा जंगल में लगी है। रात को आग की लपटें दूर तक नजर आती रहीं।

आग पर काबू पाने के लिए अलवर के अलावा दौसा और जयपुर की टीमों को भी बुलाया गया है। डीएफओ सुदर्शन के अनुसार आग करीब 2 वर्ग किमी मे लगी है। वहीं, ग्रामीणों के अनुसार आग का एरिया ज्यादा है। आसपास में 5 टाइगर की टेरिटरी लगती है। एक-दूसरी जगह से टाइगर मूव करेंगे तो खतरा भी बढ़ने का अनुमान है।

अभी हेलिकॉप्टर नहीं बुला रहे
डीएफओ ने बताया कि 4 दिन पहले सरिस्का के जंगल में फैली आग को दो हेलिकॉप्टर की मदद से बुझाया गया था। लेकिन , उस समय आग पूरी तरह नहीं बुझ पाई थी। इससे पहले ही ऑपरेशन पूरा मान लिया गया। अब 3 दिन बाद वापस आग लग गई। सरिस्का के जंगल में आग बुझाने में करीब 150 कर्मचारी लगे हैं।

वनकर्मी, एसडीआरएफ, ग्रामीण, नेचर गाइड, जिप्सी चालक, होटल कर्मी शामिल हैं। डीएफओ ने बताया कि आग पर करीब-करीब काबू पा लिया है। शाम तक पूरी तरह आग बुझा दी जाएगी। इस आग से करीब 3 वर्ग किमी का जंगल जल गया है। इस क्षेत्र में टाइगर एसटी 8 और टाइगर एसटी 15 का मूवमेंट रहता है।

जिम्मेदारों को बचाने में लगे रहे
पहले जब आग लगी तब मुख्य वन संरक्षक व कई अधिकारी आग बुझाने के प्रयास में लगने की बजाय वीआईपी की मेहमानवाजी में लगे थे। अपने मित्र और परिचितों को वीआईपी से मिलवाने की होड़ थी। इसके कारण 27 मार्च के बाद आग बेकाबू हो गई थी। आखिर में वायुसेना के दो हेलिकॉप्टर बुलाकर आग पर काबू पाने का दावा किया गया था। लेकिन, असल में पूरी तरह आग नहीं बुझ सकी थी। इस कारण वापस आग आसपास के जंगल में लगी है। जहाज वाले हनुमान मंदिर की बालेटा के पास नाहर सती मंदिर से करीब 5 किमी की दूरी है।

आसपास की रेंज के वनकर्मी मौके पर
अब जंगल में डीएफओ के साथ टहला रेंजर, अकबरपुर, अलवर बफर, सदर, तालवृक्ष व जयपुर की जमवारामगढ़ रेंज की टीम आग बुझाने में लगी हैं। पहले की तरह ग्रामीण व वनकर्मी पेड़ों की हरी टहनियों से आग को आगे बढ़ने से रोकने में लगे हैं।